गुरुवार, 26 अगस्त 2010

RAKCHHASMAR KIRAT

kathaa     आज की कथा घनश्याम देसाई द्वारा रचित है कृपया पढ़े और अपने विचार दे.

एक  था राक्छास . वह जंगल में रहता था . इतना उंचा की उसका सिर आकाश को अड़े  . राक्छास के हाथ में बहुत ताकत थी . पहाड़ पर जोर से मुक्का मारे तो पहाड़ कागज़ की थैली जैसे फुट जाय . और जोरो की आवाज हो : भम्म !
राक्छास के पैरो में बहुत ताकत थी . वह जंहा  जोर से पैर रखता वोंहा गड्ढा हो जाता, और बड़ा तालाब बन जाता.
राक्छास की सांस जोरदार थी. जोर से सांस खींचता या निकालता तो बवंडर उठता और पेड़ पौधे टेढ़े हो जाते  .
राक्छास जिस जंगल में रहता था, उसके पास एक गाँव था. गाँव में लोग रहते थे. राक्छास हर रोज गाँव में जाता और भेड़, बकरी, गाय, भैंस सबको खा जाता. और हर रोज एक लडके को पकड़ कर जंगल में ले जाता और गुफा में बंद कर देता, बहुत लडको को इस  तरह राक्छास ने गुफा में बंद कर दिया था.
आज राक्छास किरात को पकडनेवाला था . यह जानकार किरात के माता-पिता रोने लगे . किरात बोला, ' पापा, मम्मी आप मत रोइए. राक्छास को देख लूंगा. वह मेरा क्या कर लेगा?
इतना कह कर किरात ने लुहार को घर बुलाया और कहा, लुहार, लुहार मुझे दो बड़े पहिये वाले बूट बना दो.'
लुहार ने पहियोवाले  बूट बना दिए. किरात ने बूट को एक लम्बी रस्सी  से बांधकर उसे दरवाजे के पास रखा.
इतने में घम घम करता राक्छास आया. सभी लोग दर गए और रोने लगे, 'किन्तु किरात ज़रा भी न घबराया.
राक्छास ने पूछा , ' तू कौन है ?
किरात ने ऊपर देखते हुए कहा, मै किरात हूँ, तू कौन है ?
' मै राक्छास हूँ . '
' नहीं तू राक्छास नहीं है . ' किरात बोला .
मै ही राक्छास हूँ .'
किरात हंसा और बोला , यह पहियोवाला बूट पहनकर देखो, यदि ये तुम्हे बराबर आते है तो तू राक्छास है.'
राक्छास ने कभी पहियोवाले बूट नहीं देखा था. उसे मजा आया. झट पट वह पहियेवाले बूट में पैर डालकर खडा हो गया. राक्छास खडा हुआ इतने में किरात ने चुपचाप रस्सी जोर से खिंच दी और पहियेवाले बूट फिसलने लगे. राक्छास घमं से निचे गिरा और मर गया.
फिर किरात सबको जंगल में ले गया, गुफा का दरवाजा खोला. उसमे बंद लडको को बाहर निकाला.
सभी लोग बहुत खुश हुए. और जोर जोर से बोलने लगे:
राक्छासमार किरात की जय.
राक्छासमार किरात की जय/

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