![]() |
श्री बाल्ल्शौरी रेड्डी द्वारा लिखित इस कहानी को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ.
किसी गाँव में एक किसान रहता था . उसके एक लड़का था . लडके का नाम नारायण था . वह बड़े लाड प्यार में पाला गया . लेकिन पढाई में बुध्धू निकला . वह हमेशा दोस्तों के घर जाकर खेला करता था . माँ बाप उसे डांटा करते , फिर भी वह सुधरने का नाम न लेता था .
एक बार पिता ने नारायण को पास बिठाकर समझाया - ' बेटे , मेरे तो सिर्फ दो ही
दोस्त है . मै नहीं जानता की तुम्हारे इतने सारे दोस्त कैसे हो गए. वे सब तुम्हारी पढाई को बर्बाद करनेवाले बदमाश लडके है , लेकिन दुःख में एक भी दोस्त मदद देनेवाला नहीं है . तुम इन लोगो की बातो में आकर अपने भविष्य को मत बिगाड़ो .
अपने ओइटा की बाते सुनकर नारायाण गुस्से में आ गया और बोला - ' बाबूजी ! आपके सिर्फ दो ही दोस्त है, मेरे तो पचास- साठ दोस्त है. जरुरत पड़ने पर वे सब मेरे वास्ते जान तक देने को तैयार है .'
लडके की मुर्खता पर उसके पिता को हंसी आ गयी . उन्होंने कहा- ' अच्छी बात है . चलो, हम तुम्हारे और अपने दोस्तों की परीक्छा लेंगे .'
इसके बाद पिता अपने बेटे को साथ लेकर उसके दोस्तों के पास गए और उनसे बोले- ' बेटे, तुम लोग मेरे बेटे के प्राण प्रिय मित्र हो . मेरे लडके ने आज सुबह गुस्से में आकर एक आदमी को लाठी से मार डाला है . अब उसे तुम लोगो को बचाना होगा . '
यह बात सुनकर नारायण के कुछ दोस्त बोले - ' नारायाण हमार्र दोस्त नहीं है . थोड़ी जान पहचान हो जाने से क्या कोई किसी का प्राण प्रिय मित्र हो सकता है? उसने किसी को मारा, तो उसका दंड उसे खुद भोगना चाहिए . '
कुछ लडको ने कहा - अजी, हम आपके लडके को जानते ही नहीं.' कुछ लड़को ने यंहा तक कह डाला - ' ऐसे लड़के को अपना दोस्त कहने में हमें शर्म लगती है . ' इस तरह नारायाण के सभी दोस्त कोई न कोई बहाना बनाकर खिसक गए .
इसके बाद पिता नारायाण को लेकर अपने एक मित्र के घर पहुंचे . उसे साड़ी बात सुनाई . उस मित्र ने नारायाण के पिता से गले लग कर हिम्मत बंधाते हुए कागा - मेरे प्यारे दोस्त ! तुम्हे डरने की कोई बात नहीं . मेरे पास काफी धन है . मै सारा धन खर्च करके तुम्हारे पुत्र के प्राण बचयुंगा . तुम चिंता मत करो .
इसके बाद पिता अपने पुत्र को अपने दुसरे मित्र के घर ले गए . उसे भी सारी बात सुनाकर अपने पुत्र के प्राण बचाने की प्रार्थना की . उस मित्र ने कहा - ' दोस्त, यह आफत तुम्हारी नहीं, बल्कि मेरी है . तुम्हारे तो एक ही बेटा है, मेरे पांच बेटे है. इसलिए मै आदालत में बतायूँगा की यह अपराध मेरे एक पुत्र ने किया है, उसी को सजा दिलायुन्गा और तुम्हारे पुत्र को अपराध से बचयुंगा . मै तुम्हारा दोस्त हूँ . इस आफत के वक्त अगर मै अगर तुम्हारी मदद न करूँ . तो हमारी दोस्ती का मतलब ही क्या रहा? तुम दरो मत . मै देंखुन्गा, तुम्हारे पुत्र पर कोई आंच न आने पाए . '
इस तरह समझा कर उस मित्र ने पिता और पुत्र को घर भेज दिया.
ये बांटे सुनकर नारायण अचरज में पड़ गया. उसने समझ लिया की उसके पिता के दोस्त ही सच्चे दोस्त है और उसके सभी दोस्त मतलबी है . उस दिन से नारायाण ने उनकी दोस्ती छोड़ दी और ओ APANI पढाई में ज्यादा मन लगाने लगा .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें