HINDI KAHANIYA
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
ek hi upaay
प्रस्तुत है आपके सामने मालती सिंह द्वारा रचित कथा
पूरी की पूरी दही चट कर गई और तुम लोग पूछते हो क्या हुआ . '
' भैया हम कोई उपाय सोचे .'
' हाँ, एक उपाय है.' निमित आँखे नचाकर गंभीरता से बोला-
' वह कैसे ? ' शुभा ने बिच में ही टोक दिया .
सुबह का समय था, निमित और शुभा बरामदे में बैठे शतरंज खेल रहे थे, साथ ही उन्हें नास्ते का भी इन्तजार था की तभी रसोईघर से उनकी मुम्मी की आवाज सुने पड़ी - ' ओह . सत्यानाश कर डाला, इस मुई बिल्ली ने . '
दोनों चौक कर रसोईघर की और देखे तभी उनकी नजर पड़ोसन की बिल्ली पर पड़ी . जो बिजली की रफ़्तार से निकली और उनके बिलकुल करीब से हवा हो गई . दोनों को समझते देर नहीं लगी की बिल्ली ने आज फिर कुछ न कुछ नुक्सान किया है , ठीक उसके पीछे ही उनकी मुम्मी भी बेलन लिए रसोईघर से निकली , उनका चेहरा तमतमाया हुआ था .
' क्या हुआ माँ ?' दोनों बच्चो ने एक साथ पूछा . पूरी की पूरी दही चट कर गई और तुम लोग पूछते हो क्या हुआ . '
वे इधर - उधर नजर दौडाती हुई गुस्से में बोली, ' अब आ जाए घर में, चारो टाँगे तोड़कर रख दूंगी . ' वे कहती हुई ड्राइंग रूम में चली गई और दरवाजा बंद कर आई - ' और तुम लोग में इतना डूबे रहे रहे की उस पर ध्यान नहीं दिया . ' उन्होंने बच्चो को भी डांटा .
निमित और शुभा निराश हो गए. बेचारे कब से इस आस में बैठे थे की आज नाश्ते में दही के साथ आलू परांठे खायेंगे . लेकिन पड़ोसन की बिल्ली ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था.
आज पहली बार ऐसा नहीं हुआ था . बल्कि आये दिन होता था. बिल्ली किसी न किसी रास्ते से लुक-छपकर आ जाती और मौक़ा देखकर किसी न किसी चीज पर हाथ साफ़ कर जाती थी.
पड़ोसन के पास वे शिकायत लेकर भ नहीं जा सकते थे. ऐसा उनके पापा ने कहा था क्योंकि वह एक नंबर की झगडालू थी और संकी थी. आये दिन मोहल्ले वालो से उसकी ठानी ही रहती थी. जब गालियाँ देना शुरू कराती तो उसकी जुबान बंद ही नहीं होती . यंहा तक की मार पित पर भी उतारू हो जाती. सभी उस से भय खाते थे.
उनकी मुम्मी प्लेट में उनके लिए नाश्ता ले आई और उनके सामने रखती हुई बोली, ' लो, सिर्फ आलू पराठे ही खाओ. नहीं तो मुई सुडक ही गई, साथ में थोड़ा मुरब्बा बचाकर रखा था, वह भी चट कर गई.'
दोनों बच्चे बे मन से पराठे खाने लगे.' भैया हम कोई उपाय सोचे .'
' हाँ, एक उपाय है.' निमित आँखे नचाकर गंभीरता से बोला-
' हम उसके गले में घंटी बाँध दे, जैसे ही वह घर में प्रवेश करेगी, हमें उसकी मौजूदगी का पता चल जाएगा.' जब उसने अपनी बात समाप्त की तो शुभा हंस पड़ी और बोली, ' भैया' तुम तो मजाक करने लगे. ' और सर निचे कर धीरे - धीरे निवाले चबाने लगी.
तभी निमित बोला,'अच्छा सुनो, हम उसे पकड़ ले और ...' वह कैसे ? ' शुभा ने बिच में ही टोक दिया .
' अरे यह कौन सा मुश्किल काम है. वह जैसे ही कमरे में घुसे, हम किवाड़ बंद कर देंगे . फिर एक चौड़े मुंह का बोरा दरवाजे पर लगा देंगे और थोड़ा सा उसे खोल देंगे. इधर दरवाजा खुलेगा और वह बोरे में कूद पड़ेगी . अगर खुद नहीं कुड़ी तो हम में से कोई घुस कर कूदा देगा . '
' अच्छा , माँ लिया वह बोरे में फंस गई. ' शुभा ने आश्चर्या और उत्सुकता में भरकर पूछा, फिर ? '
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
RAKCHHASMAR KIRAT
kathaa आज की कथा घनश्याम देसाई द्वारा रचित है कृपया पढ़े और अपने विचार दे.
एक था राक्छास . वह जंगल में रहता था . इतना उंचा की उसका सिर आकाश को अड़े . राक्छास के हाथ में बहुत ताकत थी . पहाड़ पर जोर से मुक्का मारे तो पहाड़ कागज़ की थैली जैसे फुट जाय . और जोरो की आवाज हो : भम्म !
राक्छास के पैरो में बहुत ताकत थी . वह जंहा जोर से पैर रखता वोंहा गड्ढा हो जाता, और बड़ा तालाब बन जाता.
राक्छास की सांस जोरदार थी. जोर से सांस खींचता या निकालता तो बवंडर उठता और पेड़ पौधे टेढ़े हो जाते .
राक्छास जिस जंगल में रहता था, उसके पास एक गाँव था. गाँव में लोग रहते थे. राक्छास हर रोज गाँव में जाता और भेड़, बकरी, गाय, भैंस सबको खा जाता. और हर रोज एक लडके को पकड़ कर जंगल में ले जाता और गुफा में बंद कर देता, बहुत लडको को इस तरह राक्छास ने गुफा में बंद कर दिया था.
आज राक्छास किरात को पकडनेवाला था . यह जानकार किरात के माता-पिता रोने लगे . किरात बोला, ' पापा, मम्मी आप मत रोइए. राक्छास को देख लूंगा. वह मेरा क्या कर लेगा?
इतना कह कर किरात ने लुहार को घर बुलाया और कहा, लुहार, लुहार मुझे दो बड़े पहिये वाले बूट बना दो.'
लुहार ने पहियोवाले बूट बना दिए. किरात ने बूट को एक लम्बी रस्सी से बांधकर उसे दरवाजे के पास रखा.
इतने में घम घम करता राक्छास आया. सभी लोग दर गए और रोने लगे, 'किन्तु किरात ज़रा भी न घबराया.
राक्छास ने पूछा , ' तू कौन है ?
किरात ने ऊपर देखते हुए कहा, मै किरात हूँ, तू कौन है ?
' मै राक्छास हूँ . '
' नहीं तू राक्छास नहीं है . ' किरात बोला .
मै ही राक्छास हूँ .'
किरात हंसा और बोला , यह पहियोवाला बूट पहनकर देखो, यदि ये तुम्हे बराबर आते है तो तू राक्छास है.'
राक्छास ने कभी पहियोवाले बूट नहीं देखा था. उसे मजा आया. झट पट वह पहियेवाले बूट में पैर डालकर खडा हो गया. राक्छास खडा हुआ इतने में किरात ने चुपचाप रस्सी जोर से खिंच दी और पहियेवाले बूट फिसलने लगे. राक्छास घमं से निचे गिरा और मर गया.
फिर किरात सबको जंगल में ले गया, गुफा का दरवाजा खोला. उसमे बंद लडको को बाहर निकाला.
सभी लोग बहुत खुश हुए. और जोर जोर से बोलने लगे:
राक्छासमार किरात की जय.
राक्छासमार किरात की जय/
एक था राक्छास . वह जंगल में रहता था . इतना उंचा की उसका सिर आकाश को अड़े . राक्छास के हाथ में बहुत ताकत थी . पहाड़ पर जोर से मुक्का मारे तो पहाड़ कागज़ की थैली जैसे फुट जाय . और जोरो की आवाज हो : भम्म !
राक्छास के पैरो में बहुत ताकत थी . वह जंहा जोर से पैर रखता वोंहा गड्ढा हो जाता, और बड़ा तालाब बन जाता.
राक्छास की सांस जोरदार थी. जोर से सांस खींचता या निकालता तो बवंडर उठता और पेड़ पौधे टेढ़े हो जाते .
राक्छास जिस जंगल में रहता था, उसके पास एक गाँव था. गाँव में लोग रहते थे. राक्छास हर रोज गाँव में जाता और भेड़, बकरी, गाय, भैंस सबको खा जाता. और हर रोज एक लडके को पकड़ कर जंगल में ले जाता और गुफा में बंद कर देता, बहुत लडको को इस तरह राक्छास ने गुफा में बंद कर दिया था.
आज राक्छास किरात को पकडनेवाला था . यह जानकार किरात के माता-पिता रोने लगे . किरात बोला, ' पापा, मम्मी आप मत रोइए. राक्छास को देख लूंगा. वह मेरा क्या कर लेगा?
इतना कह कर किरात ने लुहार को घर बुलाया और कहा, लुहार, लुहार मुझे दो बड़े पहिये वाले बूट बना दो.'
लुहार ने पहियोवाले बूट बना दिए. किरात ने बूट को एक लम्बी रस्सी से बांधकर उसे दरवाजे के पास रखा.
इतने में घम घम करता राक्छास आया. सभी लोग दर गए और रोने लगे, 'किन्तु किरात ज़रा भी न घबराया.
राक्छास ने पूछा , ' तू कौन है ?
किरात ने ऊपर देखते हुए कहा, मै किरात हूँ, तू कौन है ?
' मै राक्छास हूँ . '
' नहीं तू राक्छास नहीं है . ' किरात बोला .
मै ही राक्छास हूँ .'
किरात हंसा और बोला , यह पहियोवाला बूट पहनकर देखो, यदि ये तुम्हे बराबर आते है तो तू राक्छास है.'
राक्छास ने कभी पहियोवाले बूट नहीं देखा था. उसे मजा आया. झट पट वह पहियेवाले बूट में पैर डालकर खडा हो गया. राक्छास खडा हुआ इतने में किरात ने चुपचाप रस्सी जोर से खिंच दी और पहियेवाले बूट फिसलने लगे. राक्छास घमं से निचे गिरा और मर गया.
फिर किरात सबको जंगल में ले गया, गुफा का दरवाजा खोला. उसमे बंद लडको को बाहर निकाला.
सभी लोग बहुत खुश हुए. और जोर जोर से बोलने लगे:
राक्छासमार किरात की जय.
राक्छासमार किरात की जय/
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
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