मंगलवार, 28 सितंबर 2010

ek hi upaay

प्रस्तुत है आपके सामने मालती सिंह द्वारा रचित कथा
सुबह का समय था, निमित और शुभा बरामदे में बैठे शतरंज खेल रहे थे, साथ ही उन्हें नास्ते का भी इन्तजार था की तभी रसोईघर से उनकी मुम्मी की आवाज सुने पड़ी - ' ओह . सत्यानाश कर डाला, इस मुई बिल्ली ने . '
दोनों चौक कर रसोईघर की और देखे तभी उनकी नजर पड़ोसन की बिल्ली पर पड़ी . जो बिजली की रफ़्तार से निकली और उनके बिलकुल करीब से हवा हो गई . दोनों को समझते देर नहीं लगी की बिल्ली ने आज फिर कुछ न कुछ नुक्सान किया है , ठीक उसके पीछे ही उनकी मुम्मी भी बेलन लिए रसोईघर से निकली , उनका चेहरा तमतमाया हुआ था .
' क्या हुआ माँ ?' दोनों बच्चो ने एक साथ पूछा .
पूरी की पूरी दही चट कर गई और तुम लोग पूछते हो क्या हुआ . '
 वे इधर - उधर नजर दौडाती हुई गुस्से में बोली, ' अब आ जाए घर में, चारो टाँगे तोड़कर रख दूंगी . ' वे कहती हुई ड्राइंग रूम में चली गई और दरवाजा बंद कर आई - ' और तुम लोग में इतना डूबे रहे   रहे की उस पर ध्यान नहीं दिया . ' उन्होंने बच्चो को भी डांटा .
निमित और शुभा निराश हो गए. बेचारे कब से इस आस में बैठे थे की आज नाश्ते में दही के साथ आलू परांठे खायेंगे . लेकिन पड़ोसन की बिल्ली ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था.
आज पहली बार ऐसा नहीं हुआ था . बल्कि आये दिन होता था. बिल्ली किसी न किसी रास्ते से लुक-छपकर आ जाती और मौक़ा देखकर किसी न किसी चीज पर हाथ साफ़ कर जाती थी.
पड़ोसन के पास वे शिकायत लेकर भ नहीं जा सकते थे. ऐसा उनके पापा ने कहा था क्योंकि वह एक नंबर की झगडालू थी और संकी थी. आये दिन मोहल्ले वालो से उसकी ठानी ही रहती थी. जब गालियाँ देना शुरू कराती तो उसकी जुबान बंद ही नहीं होती . यंहा तक की मार पित पर भी उतारू हो जाती. सभी उस से भय खाते थे.
उनकी मुम्मी प्लेट  में उनके लिए नाश्ता ले आई और उनके सामने रखती हुई बोली, ' लो, सिर्फ आलू पराठे ही खाओ. नहीं तो मुई सुडक ही गई, साथ में थोड़ा मुरब्बा बचाकर रखा था, वह भी चट कर गई.'
दोनों बच्चे बे मन से पराठे खाने लगे.
' भैया हम कोई उपाय सोचे .'
' हाँ, एक उपाय है.' निमित आँखे नचाकर गंभीरता से बोला-
' हम उसके गले में घंटी बाँध दे, जैसे ही वह घर में प्रवेश करेगी, हमें उसकी मौजूदगी का पता चल जाएगा.' जब उसने अपनी बात समाप्त की तो शुभा हंस पड़ी और बोली, ' भैया' तुम तो मजाक करने लगे. ' और सर निचे कर धीरे - धीरे निवाले चबाने लगी.
तभी निमित बोला,'अच्छा सुनो, हम उसे पकड़ ले और ...
' वह कैसे ? ' शुभा ने बिच में ही टोक दिया .
' अरे यह कौन सा मुश्किल काम है. वह जैसे ही कमरे में घुसे, हम किवाड़ बंद कर देंगे . फिर एक चौड़े मुंह का बोरा दरवाजे पर लगा देंगे और थोड़ा सा उसे खोल देंगे. इधर दरवाजा खुलेगा और वह बोरे में कूद पड़ेगी . अगर खुद नहीं कुड़ी तो हम में से कोई घुस कर कूदा देगा . '
' अच्छा , माँ लिया वह बोरे में फंस गई. ' शुभा ने आश्चर्या और उत्सुकता में भरकर पूछा, फिर ? '